" मित्र "
इस धुप छाव के खेल में
बना घना वृक्ष और उजाला
दे रहा हर क्षण अमूल्य अपना
ताकि जीवन बने निराला
चाहे हो स्वप्न मेरा या हो हकीक़त
समझा उसने सम्पूर्ण असलियत
हैं मेरा अटूट विश्वाश उस पर
जिसे पिरोया उसने सूली पर
स्वर्ण आभूषण सा अलंकित
कृतज्ञ सोम्य और समर्पित
सहजता छलकती हर कार्य से
भाव विभोर शांत स्वाभाव से
नहीं हैं परवाह किसी और की
किन्तु बना दवा मेरे हर दुख दर्द की
करू कामना बस जीवन पर्यंत
अमर बने रहे मित्रता सम्बन्ध !